हम रा हैं। हम आपका स्वागत एक अनंत रचयिता के प्रेम और रोशनी में करते है। अब हम संवाद करते है।

पिछली बार जब हमने संवाद किया था तब हम हीलिंग सीखने की बात कर रहे थे। यह मेरा विचार है कि जो जानकारी आपने पिछले सत्र में दिया था कि उसमे सबसे पहले कुछ अनुशासन और अभ्यास के द्वारा स्वयं को शुद्ध करना आवश्यक है। फिर मरीज़ को हील करने के उद्द्देश्य से, यह आवश्यक है कि, उदाहरण के लिए, और संभवतः कुछ ऐसा अभ्यास हो, जो मरीज़ को दिमागी तौर पर तैयार कर दे जो उसे स्वयं को ठीक करने की अनुमति देता हो। क्या मैं सही हूँ?

हम रा हैं। हालांकि आपकी सीखनें/समझनें की विकृति अनिवार्य रूप से सही है, लेकिन आपके कंपनात्मक ध्वनि समूह का चुनाव पूरी तरह से सटीक नहीं है जैसा कि यह भाषा अनुमति देता है।

उदाहरण के तौर पर ऐसा नहीं है कि हीलर ही काम करता है। यह व्यवहारिक रूप से स्वयं आप सभी के अंदर मौजूद रहता है। हीलर तो केवल उत्तप्रेरक होता है, जैसे कि इस उपकरण की तरह, जो हमारे शब्दों के लिए चैनल प्रदान करने के लिए आवश्यक उत्प्रेरण है, फिर भी, बिना किसी उदाहरण या किसी भी प्रकार के अभ्यास के, वो इस कार्य के लिए बिल्कुल भी नहीं सोचती है।

हीलिंग का कार्य इस मायने में उपयुक्त है कि यह अनंत बुद्धिमानिता के कुछ विकृति को चैनल करने का एक रूप है।

यदि यह सम्मान/कर्तव्य हमे प्रदान किया जाए तो हमने हीलिंग की विधि सीखने/सिखाने को स्वीकार करने का फैसला किया है। मैं पहले चरण के बारे में पूछूंगा जिसे हमें पूरा करना चाहिए ताकि हम प्रभावी हीलर बन सके।

हम रा हैं। हम तीन सिखाने/सीखने में से पहली से शुरुआत करेंगे।

सबसे पहले हम अनंत बुद्धिमानिता के साथ संपर्क के लिए आवश्यक मानसिक सीखनें/सिखानें से शुरुआत करते है। मानसिक कार्य की आवश्यक शर्त है कि इसमें आवश्यकता पड़ने पर स्वयं को मौन की एक स्थिर अवस्था मे बनाये रखनें की क्षमता शामिल है। ताकि मन को एक दरवाजे की तरह खोला जा सके। मौन ही इसकी चाबी है।

इस दरवाजे के भीतर एक वर्गीकृत संरचना है जिसकी तुलना आप भूगोल और कुछ मायनों में ज्यामिति से कर सकते हैं, क्योंकि यह वर्गीकरण काफी नियमित है, जो आंतरिक संबंधों को प्रभावित करता है।

मानसिक अनुशासन की अवधारणा में महारत हासिल करने के लिए आपको पहले स्वयं की जांच करना आवश्यक है। आपके घनत्वता के ध्रुवियता को आंतरिक किया जाना चाहिए। जहां आप अपने मन में धैर्यता को पाते है, आपको सचेत रूप से अधैर्यता को खोजना चाहिए और ठीक ऐसा ही इसके विपरीत क्रम में करना चाहिए। प्रत्येक विचार जो एक जीव के पास होता है, उस विचार के बदले में एक विपरीत विचार होता ही है। मन के अनुशासन में सबसे पहले, उन दोनों चीजों की पहचान करना शामिल है, जिन्हें आप स्वीकार करते है और जिन चीजों को आप अपने भीतर अस्वीकार करते है, और फिर प्रत्येक सकारात्मक और नकारात्मक चार्ज को संतुलित करते है। मन में सब कुछ समाहित है। इसलिए, आपको अपने भीतर इस संपूर्णता की खोज करनी चाहिए।

दूसरे मानसिक अनुशासन में आपको अपने भीतर की चेतना के पूर्णता को स्वीकार करना चाहिए। यह भौतिक चेतना में ध्रुवीयता वाले जीव के लिए नहीं है कि वह गुणों के बीच चयन करे और इस प्रकार ऐसी भूमिकाएँ बनाये जो पहले से ही विकृत मन समूह में रुकावटें और उलझन पैदा करती हैं। प्रत्येक स्वीकृति उन अनेक विकृतियों के हिस्से को सहज़ कर देती है जिन्हें आप निर्णय उत्पन्न करने वाली क्षमता कहते हैं।

मन का तीसरा अनुशासन है, पहले सीख को दोहराना परंतु इस बार ध्यान बाहर की ओर अपने साथ के इकाइयों की तरफ होना चाहिए जिनसे आप मिलते है। प्रत्येक इकाई मे पूर्णता मौजूद होती है। इस प्रकार, हर संतुलन को समझने की काबिलियत जरूरी है। जब आप धैर्यता को देखते हैं, तो आप अपनी मानसिक समझ में धैर्यता/अधैर्यता को प्रतिबिंबित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। जब आप अधैर्यता को देखते हैं, तो आपकी समझ के मानसिक व्यवस्था के लिए अधैर्यता/धैर्यता होना आवश्यक है। हम इसे एक साधारण उदाहरण के रूप में इस्तेमाल करते है। मन के अधिकांश व्यवस्थाओं के कई पहलू होते है, और दोनों में से एक स्वयं के ध्रुवियताओं की समझ, या जिसे आप अन्य-स्वयं के ध्रुवियतायें कहते हैं, उसे एक जटिल कार्य के रूप में समझा जा सकता है और समझा जाना चाहिए।

अगला चरण दूसरों के ध्रुवीयताओं को स्वीकार करना है, जो दूसरे चरण को प्रतिबिंबित करता है।

यह मानसिक अनुशासन को सीखने के पहले चार चरण है। पांचवें चरण में मन का, अन्य मन का, सामूहिक मन का और अनंत मन के भौगोलिक और ज्यामितीय संबंधों और अनुपातों का अवलोकन करना शामिल है।

सीखने/सिखाने का दूसरा क्षेत्र शरीर समूहों का अध्ययन/समझ है। हमे अपने शरीर को अच्छी तरह जानना जरूरी है। ऐसा करने के लिए, आप अपने दिमाग का इस्तेमाल यह जांचने के लिए करेंगे कि कैसे अहसास, झुकाव—जिसे आप भावनायें कहते है—शरीर के अलग अलग हिस्सों को प्रभावित करती है। शरीर के ध्रुवियताओं को समझना और उन्हें स्वीकार करना दोनों आवश्यक हैं, फिर अपने चेतना को ध्यान में रखते हुए मन पर जो कार्य किया गया है उसे रासायनिक/भौतिक अभिव्यक्ति में दोहराया जाना चाहिए।

शरीर मन की रचना का एक प्राणी है। इसके अपने झुकाव होते है। सबसे पहले जैविक झुकाव को पूरी तरह से समझा जाना चाहिए और फिर उसके विपरीत झुकाव को अपने पूर्ण अभिव्यक्ति में समझने की अनुमति दी जानी चाहिए। एक बार फिर, शरीर को एक संतुलित, साथ ही ध्रुवीकृत, व्यक्ति के रूप में स्वीकार करने की प्रक्रिया को तब पूरा किया जा सकता है।

इसके बाद का कार्य इस समझ को अन्य-स्वयं जिनसे आप मिलेंगे उनके शरीरों तक विस्तारित करना है। इसका सबसे सरल उदाहरण यह समझना है कि प्रत्येक जैविक पुरुष में स्त्री होती है; प्रत्येक जैविक स्त्री में पुरुष होता है। यह एक साधारण उदाहरण है। हालाँकि, लगभग हर मामले में जहाँ आप स्वयं या दूसरों के शरीर को समझने का प्रयास कर रहे है, आप फिर से पाएंगे कि इसमे शामिल ध्रुवीयता समूहों को पूरी तरह से समझने के लिए सबसे सूक्ष्म विवेक आवश्यक है।

हम इस सत्र को अगली बार तक बंद करने का सुझाव देते है ताकि हम तीसरे क्षेत्र पर अधिक समय दे सकें, ताकि उसे वह समय मिल सके जिसका वह हकदार है।

हम इस उपकरण को छोड़ने से पहले एक सवाल का जवाब दे सकते है यदि वह छोटा है।

क्या यह उपकरण आरामदेह स्थिति में है? क्या कोई और चीज है जो इस उपकरण के आराम को बढ़ा सकती है? बस इतना ही पूछना है।

हम रा हैं। इस उपकरण में कुंडलीदार ऊर्जा के प्रवाह को बेहतर बनाने के लिए आप प्रत्येक सत्र में मोमबत्ती को घड़ी के सुई के दिशा में लगभग 10° घुमा सकते है। इसके अलावा यह विशेष व्यवस्था ठीक है। लेकिन हम वस्तुओं को ज्यामितीय देखभाल के साथ केन्द्रित करने और कभी-कभी जाँचने के लिए कहते है। हम यह भी कहते है कि इन वस्तुओं को इस स्थान/समय में गैर-जरूरी घटनाओं और कार्य के संपर्क में नहीं लाया जाना चाहिए।

हम रा हैं। हम इस उपकरण को एक अनंत रचयिता के प्रेम और रोशनी में छोड़ रहे है। इसलिए, हमारे दोस्तो, एक अनंत रचयिता की शक्ति और शांति में आनंदित होते हुए आगे बढ़ो। अडोनाई।